न्यूज डेस्क, अमर उजाला, आगरा
Updated Fri, 01 Jan 2021 09:26 AM IST
उम्मीद का उजियारा: – फोटो : अमर उजाला
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कोरोना के कठिन काल में कोई न कोई मुश्किल तो हर किसी के सामने आई लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जिन्होंने हौसले के दम पर न केवल इनका सामना किया बल्कि कदम दर कदम आगे बढ़ते रहे। एक रास्ता बंद हुआ तो नया खोल लिया। सोच बदली तो नई राहें मिल गई।
ये जुनूनी लोग नए रास्ते पर चले तो सफलता की नई इबारत लिख दी। ताजनगरी के हार्दिक अग्रवाल, शैलेश अग्रवाल और शिवानी मिश्रा और इन जैसे हजारों लोग, जो न केवल खुद अपनी जिंदगी को पटरी पर ले आए, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल बने।
शिवानी की फैशन अकादमी बंद हुई तो सैलून खोल लिया शास्त्रीपुरम निवासी शिवानी मिश्रा ने पिछले छह वर्षों से फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी हैं। उनकी खुद की फैशन एंड ब्यूटी अकादमी भी है। जिसका सफल संचालन कर रहीं थीं। लॉकडाउन ने अकादमी को झकझोर कर रख दिया।
शिवानी मिश्रा ने बताया कि बढ़ते खर्च ने चिंता में डाल दिया था। बाजार बंद थे, जिंदगी थम सी गई थी। बरसों से कार्यरत भरोसेमंद स्टाफ को भी मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता था। ऐसे में काम बदलने की बात सोची और राह मिल गई। पैसे जुटाकर फैमिली ब्यूटी सैलून की शुरुआत की। यह चल निकला। आज 20 लोगों को रोजगार दे रही हूं।
हार्दिक की कैटरिंग बंद हुई तो ऑर्गेनिक फूड की सप्लाई शुरू कर दी
विजय नगर निवासी 21 वर्षीय हार्दिक अग्रवाल अपने पिता संग करीब 100 वर्ष पुराना कैटरिंग का सफल कारोबार संभालते थे। कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ये दिन भी देखने को मिलेंगे। लॉकडाउन में सभी तरह की गतिविधियां बंद होने के कारण कारोबार भी ठप हो गया। पिता का उदास चेहरा देखा नहीं जाता था। इधर, कुछ ऐसा काम शुरू करने का मन था, जो इस समय के माहौल के अनुकूल हो।
हार्दिक ने बताया कि कम पूंजी से ऑर्गेनिक फूड का काम शुरू किया। इसमें दाल, तेल, घी, चावल आदि को शामिल किया। न केवल शहर में अन्य शहरों की तरफ भी रुख किया। इसके लिए ई-कॉमर्स के माध्यम से भी काम शुरू कर दिया। इस समय उनका टर्नओवर करीब पांच लाख तक पहुंच गया है।
ढलाई का काम बंद, शैलेश ने शुरू की बेसन इकाई 15 वर्षों से ढलाई का काम कर रहे शैलेश अग्रवाल की जिंदगी में भी लॉकडाउन से ठहराव आ गया। जमा हुआ काम चार माह के लंबे समय के लिए बंद हो जाना कष्टकारी था। ऐसे में नया काम करने की चुनौती थी।
शैलेश ने बताया कि पिछले साल वह बीमार पड़ गए थे। तब लगा कि लोगों द्वारा पैसे देने के बावजूद उन्हें सही खाना नहीं मिल रहा है। यही सोच लॉकडाउन खुलने के बाद बेसन की निर्माण इकाई शुरू की। इसके अंतर्गत प्रीमियम क्वालिटी का बेसन बनाना शुरू किया। कुछ समय में कारोबार लाभ की स्थिति में पहुंच गया है।
सार
2020 की यादें कड़वी ज्यादा हैं और मीठी कम। पर फिर भी आशावान होना और सकारात्मक सोचना मनुष्य की प्रवृत्ति है। ऐसा भी नहीं है कि सब बुरा ही बुरा हुआ है। ऐसे समय जब अधिकांश यादों में कोरोना के कहर ने कैसे 2020 को बर्बाद किया- ये ही जिक्र आ रहा है तो हम आपसे ये पूछना चाहते हैं कि तमाम दिक्कतों के बाद भी यह जाता हुआ साल आपके लिए क्या अच्छा लेकर आया? अमर उजाला की इसी पहल के तहत कुछ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं पढ़िए उनकी कहानियां…
विस्तार
कोरोना के कठिन काल में कोई न कोई मुश्किल तो हर किसी के सामने आई लेकिन ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जिन्होंने हौसले के दम पर न केवल इनका सामना किया बल्कि कदम दर कदम आगे बढ़ते रहे। एक रास्ता बंद हुआ तो नया खोल लिया। सोच बदली तो नई राहें मिल गई।
ये जुनूनी लोग नए रास्ते पर चले तो सफलता की नई इबारत लिख दी। ताजनगरी के हार्दिक अग्रवाल, शैलेश अग्रवाल और शिवानी मिश्रा और इन जैसे हजारों लोग, जो न केवल खुद अपनी जिंदगी को पटरी पर ले आए, बल्कि दूसरों के लिए मिसाल बने।
शिवानी की फैशन अकादमी बंद हुई तो सैलून खोल लिया
शास्त्रीपुरम निवासी शिवानी मिश्रा ने पिछले छह वर्षों से फैशन इंडस्ट्री से जुड़ी हैं। उनकी खुद की फैशन एंड ब्यूटी अकादमी भी है। जिसका सफल संचालन कर रहीं थीं। लॉकडाउन ने अकादमी को झकझोर कर रख दिया।
शिवानी मिश्रा ने बताया कि बढ़ते खर्च ने चिंता में डाल दिया था। बाजार बंद थे, जिंदगी थम सी गई थी। बरसों से कार्यरत भरोसेमंद स्टाफ को भी मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता था। ऐसे में काम बदलने की बात सोची और राह मिल गई। पैसे जुटाकर फैमिली ब्यूटी सैलून की शुरुआत की। यह चल निकला। आज 20 लोगों को रोजगार दे रही हूं।
हार्दिक की कैटरिंग बंद हुई तो ऑर्गेनिक फूड की सप्लाई शुरू कर दी
विजय नगर निवासी 21 वर्षीय हार्दिक अग्रवाल अपने पिता संग करीब 100 वर्ष पुराना कैटरिंग का सफल कारोबार संभालते थे। कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ये दिन भी देखने को मिलेंगे। लॉकडाउन में सभी तरह की गतिविधियां बंद होने के कारण कारोबार भी ठप हो गया। पिता का उदास चेहरा देखा नहीं जाता था। इधर, कुछ ऐसा काम शुरू करने का मन था, जो इस समय के माहौल के अनुकूल हो।
हार्दिक ने बताया कि कम पूंजी से ऑर्गेनिक फूड का काम शुरू किया। इसमें दाल, तेल, घी, चावल आदि को शामिल किया। न केवल शहर में अन्य शहरों की तरफ भी रुख किया। इसके लिए ई-कॉमर्स के माध्यम से भी काम शुरू कर दिया। इस समय उनका टर्नओवर करीब पांच लाख तक पहुंच गया है।
ढलाई का काम बंद, शैलेश ने शुरू की बेसन इकाई 15 वर्षों से ढलाई का काम कर रहे शैलेश अग्रवाल की जिंदगी में भी लॉकडाउन से ठहराव आ गया। जमा हुआ काम चार माह के लंबे समय के लिए बंद हो जाना कष्टकारी था। ऐसे में नया काम करने की चुनौती थी।
शैलेश ने बताया कि पिछले साल वह बीमार पड़ गए थे। तब लगा कि लोगों द्वारा पैसे देने के बावजूद उन्हें सही खाना नहीं मिल रहा है। यही सोच लॉकडाउन खुलने के बाद बेसन की निर्माण इकाई शुरू की। इसके अंतर्गत प्रीमियम क्वालिटी का बेसन बनाना शुरू किया। कुछ समय में कारोबार लाभ की स्थिति में पहुंच गया है।