बहराइच के गांव में थारू समुदाय अपने खेतों की सब्जियां खाता है, जिससे कमजोरी पास नहीं फटकती है। पड़ोस के गांव में सरकारी अनाज के भरोसे रहने वाले परिवारों के बच्चे मिले ज्यादा कुपोषित।
रेशमा का एक साल का बच्चा पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता, मां को नहीं पता कि बच्चा कुपोषित है। रेशमा के बच्चे को गांव में टीके तो लगे पर कुपोषण दूर करने की जानकारी किसी ने नहीं दी। यहां से 10 किमी दूर रहने वाली पुतली के तीन बच्चे हैं और सभी तंदुरुस्त हैं, क्योंकि पुतली का स्वाभाविक खानपान पौष्टिक है।
यूपी में कुपोषण में सबसे ऊपर जिले बहराइच के सबसे पिछड़े ब्लॉक मिहींपुरवा के कैलाशनगर गांव में रहने वाली रेशमा और अंबा, विशुनापुर गांव में रहने वाली पुतली बेहद गरीब हैं, रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करनी होती है, लेकिन बच्चों में कुपोषण के मामले में तस्वीर अलग है। कोरोना काल में रेशमा के पति को काम कम मिलने से हालात और खराब हो गए, बच्चों को जो घर में मिल पाता है वही खाते हैं।
आंगनबाड़ी से पिछले दो माह में रेशमा को डेढ़ किलो चावल और 2.5 किलो गेहूं मिला। वहीं, पुतली थारू समुदाय से हैं, उन्होंने घर के पास में एक छोटे से खेत में मौसमी हरी सब्जियां, मूली, गाजर आदि उगा रखी हैं। पुतली ही नहीं, दुधवा जंगल के किनारे बसे अंबा गांव के लोग ऐसे ही सब्जियां उगाते हैं। हर रोज अपने किचेन गार्डेन से ताजी सब्जियां और साग निकाल कर पकाना इनकी दिनचर्या है।
अपने खेत से सब्जियां तोड़ते हुए पुतली कहती हैं, हम अपने खेत की ही सब्जियां बनाकर खाते हैं, इतने पैसे नहीं होते कि बाहर से खरीद पाएं। पूरे यूपी में कुपोषण से होने वाली मौतों में बहराइच सबसे ऊपर है, इसमें भी मिहींपुरवा ब्लॉक की स्थिति सबसे अधिक खराब है। मिहींपुरवा ब्लॉक की विशुनापुर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर तैनात एएनएम प्रतिमा के पास 12-13 गांवों की जिम्मेदारी। एएनएम प्रतिमा बताती हैं, थारुओं के गांव में कुपोषण बहुत ही कम मिलेगा। यहां साल में दो से तीन ही कुपोषित बच्चे मिलते हैं। हरी सब्जी, दाल, मीट-मछली आदि खाने से कुपोषण नहीं होता है। हम जितने भी गांव देखते हैं, उनमें सिर्फ चार बच्चे ही अति कुपोषित हैं। यहां की महिलाओं में खून की कमी भी नहीं होती। डिलिवरी भी नार्मल होती है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) के अनुसार भारत में मां बनने की योग्य आयु की एक चौथाई महिलाएं कुपोषित हैं। इन महिलाओं का बॉडी मॉस इंडेक्स 18.5 (kg/m2) से कम है। जबकि एक सामान्य महिला या पुरुष का बॉडी मास इंडेक्स 18.5-24.9 के बीच होना चाहिए। एक कुपोषित मां एक कमजोर बच्चे को जन्म देती है और कुपोषण पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही चलता रहता है।
लोहे की कढ़ाई में बना साग देता है पोषण
मिहींपुरवा ब्लॉक में आईसीडीएस की सुपरइवाइज मिनी बाजपेयी कहती हैं, ‘थारुओं के क्षेत्र में लोग लोहे की कढ़ाई में साग बना कर खूब खाते हैं, जिससे आयरन की कमी नहीं हो पाती। कई संस्थाओं ने उस विशेष साग पर रिसर्च के बाद उसे पोषण के लिए अच्छा माना। साग में आयरन, जिंक आदि बहुत से तत्व पाए जाते हैं, और ये कारीकोट, सुजौली और धर्मापुर की बेल्ट में ही पाया जाता है। थारू लोग मोटा अनाज भी अधिक खाते हैं।’
गर्भवती महिलाओं के खानपान पर डॉक्टर भी सलाह देते हैं। लखनऊ में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सिंह कहती हैं, अगर गर्भवती मां के खान-पान पर ध्यान दिया जाए तो बच्चा तो सेहतमंद होगा ही। साथ ही प्राकृतिक और नेचुरल चीजों से आयरन और जिंक की कमी पूरी होती है। नॉनवेज से प्रोटीन अधिक मिलता है।
बच्चों में स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कम उंचाई): नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार पांच साल से नीचे के बच्चों में स्टंटिंग की समस्या 56.8 फीसदी से कम होकर 46.3 फीसदी तक आ गई है। जो राष्ट्रीय औसत 38.4 फीसदी से फिर भी अधिक है।
बच्चों में वेस्टिंग (ऊंचाई के हिसाब से वजन) : उत्तर प्रदेश में बच्चों में वेस्टिंग की समस्या 3.1 फीसदी बढ़ गई है। वर्ष 2005-06 में जो 14.8 फीसदी था, वो 2015-16 में 17.9 फीसदी तक पहुंच गया है। जबकि राष्ट्रीय स्तर 1.2 फीसदी है।
अंडरवेट (कम वजन का होना): वर्ष 2005-06 से 2015-16 के बीच कम वजन के बच्चे 42.4 फीसदी से कम होकर 39.5 फीसदी तक आ गए। इस दशक में यूपी में 2.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि इसी समयान्तराल में कम वजन के बच्चों की दर में गिरावट 6.7 फीसदी रही।
कैसा है बहराइच की जनता का स्वास्थ्य?
- 52.7 फीसदी महिलाओं में खून की कमी
- 65.1 फीसदी बच्चे उम्र के हिसाब से कम उंचाई के हैं (पांच वर्ष से कम)
- 44 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं (पांच वर्ष से कम)
(स्रोत-नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे : 2015-16)
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2016 के अनुसार भारत में 58.6 फीसदी बच्चों और 50.4 फीसदी गर्भवती महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) पाई गई।
बहराइच के गांव में थारू समुदाय अपने खेतों की सब्जियां खाता है, जिससे कमजोरी पास नहीं फटकती है। पड़ोस के गांव में सरकारी अनाज के भरोसे रहने वाले परिवारों के बच्चे मिले ज्यादा कुपोषित।
रेशमा का एक साल का बच्चा पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता, मां को नहीं पता कि बच्चा कुपोषित है। रेशमा के बच्चे को गांव में टीके तो लगे पर कुपोषण दूर करने की जानकारी किसी ने नहीं दी। यहां से 10 किमी दूर रहने वाली पुतली के तीन बच्चे हैं और सभी तंदुरुस्त हैं, क्योंकि पुतली का स्वाभाविक खानपान पौष्टिक है।
यूपी में कुपोषण में सबसे ऊपर जिले बहराइच के सबसे पिछड़े ब्लॉक मिहींपुरवा के कैलाशनगर गांव में रहने वाली रेशमा और अंबा, विशुनापुर गांव में रहने वाली पुतली बेहद गरीब हैं, रोजी-रोटी के लिए मजदूरी करनी होती है, लेकिन बच्चों में कुपोषण के मामले में तस्वीर अलग है। कोरोना काल में रेशमा के पति को काम कम मिलने से हालात और खराब हो गए, बच्चों को जो घर में मिल पाता है वही खाते हैं।
आंगनबाड़ी से पिछले दो माह में रेशमा को डेढ़ किलो चावल और 2.5 किलो गेहूं मिला। वहीं, पुतली थारू समुदाय से हैं, उन्होंने घर के पास में एक छोटे से खेत में मौसमी हरी सब्जियां, मूली, गाजर आदि उगा रखी हैं। पुतली ही नहीं, दुधवा जंगल के किनारे बसे अंबा गांव के लोग ऐसे ही सब्जियां उगाते हैं। हर रोज अपने किचेन गार्डेन से ताजी सब्जियां और साग निकाल कर पकाना इनकी दिनचर्या है।
अपने खेत से सब्जियां तोड़ते हुए पुतली कहती हैं, हम अपने खेत की ही सब्जियां बनाकर खाते हैं, इतने पैसे नहीं होते कि बाहर से खरीद पाएं। पूरे यूपी में कुपोषण से होने वाली मौतों में बहराइच सबसे ऊपर है, इसमें भी मिहींपुरवा ब्लॉक की स्थिति सबसे अधिक खराब है। मिहींपुरवा ब्लॉक की विशुनापुर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर तैनात एएनएम प्रतिमा के पास 12-13 गांवों की जिम्मेदारी। एएनएम प्रतिमा बताती हैं, थारुओं के गांव में कुपोषण बहुत ही कम मिलेगा। यहां साल में दो से तीन ही कुपोषित बच्चे मिलते हैं। हरी सब्जी, दाल, मीट-मछली आदि खाने से कुपोषण नहीं होता है। हम जितने भी गांव देखते हैं, उनमें सिर्फ चार बच्चे ही अति कुपोषित हैं। यहां की महिलाओं में खून की कमी भी नहीं होती। डिलिवरी भी नार्मल होती है।
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देश में मां बनने के योग्य आयु की 25 फीसदी महिलाएं कुपोषित
थारू समुदाय की पुतली अपने खेत से सब्जियां तोड़ते हुए
– फोटो : अमर उजाला
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (2015-16) के अनुसार भारत में मां बनने की योग्य आयु की एक चौथाई महिलाएं कुपोषित हैं। इन महिलाओं का बॉडी मॉस इंडेक्स 18.5 (kg/m2) से कम है। जबकि एक सामान्य महिला या पुरुष का बॉडी मास इंडेक्स 18.5-24.9 के बीच होना चाहिए। एक कुपोषित मां एक कमजोर बच्चे को जन्म देती है और कुपोषण पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही चलता रहता है।
लोहे की कढ़ाई में बना साग देता है पोषण
मिहींपुरवा ब्लॉक में आईसीडीएस की सुपरइवाइज मिनी बाजपेयी कहती हैं, ‘थारुओं के क्षेत्र में लोग लोहे की कढ़ाई में साग बना कर खूब खाते हैं, जिससे आयरन की कमी नहीं हो पाती। कई संस्थाओं ने उस विशेष साग पर रिसर्च के बाद उसे पोषण के लिए अच्छा माना। साग में आयरन, जिंक आदि बहुत से तत्व पाए जाते हैं, और ये कारीकोट, सुजौली और धर्मापुर की बेल्ट में ही पाया जाता है। थारू लोग मोटा अनाज भी अधिक खाते हैं।’
गर्भवती महिलाओं के खानपान पर डॉक्टर भी सलाह देते हैं। लखनऊ में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सिंह कहती हैं, अगर गर्भवती मां के खान-पान पर ध्यान दिया जाए तो बच्चा तो सेहतमंद होगा ही। साथ ही प्राकृतिक और नेचुरल चीजों से आयरन और जिंक की कमी पूरी होती है। नॉनवेज से प्रोटीन अधिक मिलता है।
यूपी में बच्चों में कुपोषण की स्थिति
कुपोषण के शिकार बच्चे
– फोटो : अमर उजाला
बच्चों में स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कम उंचाई): नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार पांच साल से नीचे के बच्चों में स्टंटिंग की समस्या 56.8 फीसदी से कम होकर 46.3 फीसदी तक आ गई है। जो राष्ट्रीय औसत 38.4 फीसदी से फिर भी अधिक है।
बच्चों में वेस्टिंग (ऊंचाई के हिसाब से वजन) : उत्तर प्रदेश में बच्चों में वेस्टिंग की समस्या 3.1 फीसदी बढ़ गई है। वर्ष 2005-06 में जो 14.8 फीसदी था, वो 2015-16 में 17.9 फीसदी तक पहुंच गया है। जबकि राष्ट्रीय स्तर 1.2 फीसदी है।
अंडरवेट (कम वजन का होना): वर्ष 2005-06 से 2015-16 के बीच कम वजन के बच्चे 42.4 फीसदी से कम होकर 39.5 फीसदी तक आ गए। इस दशक में यूपी में 2.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि इसी समयान्तराल में कम वजन के बच्चों की दर में गिरावट 6.7 फीसदी रही।
कैसा है बहराइच की जनता का स्वास्थ्य?
- 52.7 फीसदी महिलाओं में खून की कमी
- 65.1 फीसदी बच्चे उम्र के हिसाब से कम उंचाई के हैं (पांच वर्ष से कम)
- 44 फीसदी बच्चे कम वजन के हैं (पांच वर्ष से कम)
(स्रोत-नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे : 2015-16)
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2016 के अनुसार भारत में 58.6 फीसदी बच्चों और 50.4 फीसदी गर्भवती महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) पाई गई।