बहुत कम लोगों को पता होगा कि कांग्रेस का मौजूदा चुनाव चिह्न पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह की बदौलत ही मिला। बूटा सिंह उस कमेटी के इंचार्ज थे, जिसने कांग्रेस को नया चुनाव चिह्न देने के लिए मंथन किया था। यही नहीं बूटा सिंह ने पहली बार अकाली दल की तरफ से चुनाव लड़ा था और राजनीति में आने से पहले वह एक पत्रकार थे। उनके चचेरे भाई सरदार गुलजार सिंह बताते हैं कि सरदार बूटा सिंह में एक जज्बा था। यही वजह है कि पंजाब और राजस्थान दोनों प्रदेशों में उनके नाम का डंका बजता था। जितना प्यार वह राजस्थान से करते थे उतना ही पंजाब से।
बूटा सिंह का जन्म जालंधर के गांव मुस्तफापुर में 1934 में हुआ था। उनके रिश्तेदार आज भी गांव जल्लोवाल व फगवाड़ा और जालंधर शहर में बसे हैं। रेलवे से सेवानिवृत्त सरदार गुलजार सिंह बूटा सिंह के चचेरे भाई है और उन्होंने लंबा वक्त उनके साथ बिताया। आजादी के बाद कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था।
बाद में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा बना लेकिन गाय और बछड़े की जोड़ी को इंदिरा गांधी और संजय गांधी से जोड़कर हंसी उड़ाई गई तो यह चुनाव चिन्ह कांग्रेस पार्टी ने बदलने का निर्णय लिया। एक कमेटी बनाकर बूटा सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई कि कांग्रेस का चुनाव चिन्ह क्या होना चाहिये। उस समय हाथ, हाथी और साइकिल चुनाव चिन्ह में से बूटा सिंह ने हाथ का निशान फाइनल किया और इंदिरा गांधी ने उस पर अपनी मुहर लगाई।
गुलजार सिंह बताते हैं कि दिल्ली हो या राजस्थान, जहां भी बूटा सिंह होते थे, वह हमेशा पंजाब की बात जरूर करते थे। बूटा सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता रहे, जिन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय बूटा सिंह खेल मंत्री रहे। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें पहले देश का गृहमंत्री बनाया तो प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें खाद्य मंत्री बनाया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में राष्ट्रीय एससी कमीशन का चेयरमैन बनाया गया।
गुलजार सिंह बताते हैं कि आठ बार सांसद बनने के बावजूद वह जमीनी नेता थे। हमेशा अनुसूचित वर्ग के पक्षधर थे और हर फ्रंट पर उनकी बात रखते थे। गुलजार सिंह बताते हैं कि बूटा सिंह गांधी परिवार के काफी करीबी थे और परिवार हमेशा उनको अपना संकटमोचक मानता था। यही वजह रही कि कांग्रेस ने उनको राजस्थान की जलौर सीट दी थी, जो कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती थी। हालांकि 1966 में बूटा सिंह रोपड़ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। पंजाब में सिखों की कांग्रेस के प्रति नाराजगी को देखकर गांधी परिवार ने उन्हें राजस्थान भेज दिया था।
राजनीतिक सफर
1989 में बूटा सिंह चुनाव हार गए लेकिन 1991 में फिर जीते। इसके बाद वे फिर रोपड़ से चुनाव हारे। 1998 में उन्हें टिकट नहीं दी गई। वे राजस्थान के जालौर से आजाद लड़े और रिकॉर्ड 1.65 लाख वोटों से जीते थे। सोनिया गांधी के कांग्रेस प्रधान बनने के बाद वापस आए और 1999 में जालौर से फिर सांसद चुने गए। इस दौरान वे पब्लिक अकाउंट कमेटी के चेयरमैन रहे। 2004 में चुनाव से पहले उनका एक्सीडेंट हो गया। पंजाब की राजनीति में उनका नाम कई बार उछला कि वह सीएम पद के प्रबल दावेदार हैं लेकिन वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाये।
बूटा सिंह सबसे पहले अकाली दल की टिकट पर 1962 में मोगा से सांसद बने थे। फिर 1967 में वे दोबारा यहां से जीते। 1971 में रोपड़ सीट से कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की। 1975 में भारत सरकार में उन्हें डिप्टी रेलवे मंत्री बनाया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे एससी कोटे की करीब 50 हजार पद भरवाए थे।
1977 में वे चुनाव हार गए थे। 1980 में वे रोपड़ से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते। 1982 में उन्हें एशियन गेम्स का प्रभारी भी बनाया गया। इंदिरा गांधी की मौत के बाद बूटा सिंह राजीव गांधी के करीब हो गए।
कैप्टन ने बूटा सिंह के निधन पर जताया शोक
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह के निधन पर दुख प्रकट किया। अपने शोक संदेश में कैप्टन ने कहा कि उन्हें वरिष्ठ कांग्रेस नेता के अकाल प्रस्थान की खबर सुनकर दुख पहुंचा है। बूटा सिंह आठ बार लोकसभा सदस्य चुने गए थे। वे पूर्व केंद्रीय मंत्री, बिहार के पूर्व राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व चेयरमैन रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने आखिरी दम तक समाज के गरीब और दबे-कुचले वर्गों की भलाई और तरक्की के लिए अथक कार्य किए। मुख्यमंत्री ने ईश्वर के समक्ष अरदास की कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और उनके पारिवारिक सदस्यों को ईश्वरीय आदेश मानने का बल प्रदान करें।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि कांग्रेस का मौजूदा चुनाव चिह्न पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह की बदौलत ही मिला। बूटा सिंह उस कमेटी के इंचार्ज थे, जिसने कांग्रेस को नया चुनाव चिह्न देने के लिए मंथन किया था। यही नहीं बूटा सिंह ने पहली बार अकाली दल की तरफ से चुनाव लड़ा था और राजनीति में आने से पहले वह एक पत्रकार थे। उनके चचेरे भाई सरदार गुलजार सिंह बताते हैं कि सरदार बूटा सिंह में एक जज्बा था। यही वजह है कि पंजाब और राजस्थान दोनों प्रदेशों में उनके नाम का डंका बजता था। जितना प्यार वह राजस्थान से करते थे उतना ही पंजाब से।
बूटा सिंह का जन्म जालंधर के गांव मुस्तफापुर में 1934 में हुआ था। उनके रिश्तेदार आज भी गांव जल्लोवाल व फगवाड़ा और जालंधर शहर में बसे हैं। रेलवे से सेवानिवृत्त सरदार गुलजार सिंह बूटा सिंह के चचेरे भाई है और उन्होंने लंबा वक्त उनके साथ बिताया। आजादी के बाद कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था।
बाद में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह गाय और बछड़ा बना लेकिन गाय और बछड़े की जोड़ी को इंदिरा गांधी और संजय गांधी से जोड़कर हंसी उड़ाई गई तो यह चुनाव चिन्ह कांग्रेस पार्टी ने बदलने का निर्णय लिया। एक कमेटी बनाकर बूटा सिंह को जिम्मेदारी सौंपी गई कि कांग्रेस का चुनाव चिन्ह क्या होना चाहिये। उस समय हाथ, हाथी और साइकिल चुनाव चिन्ह में से बूटा सिंह ने हाथ का निशान फाइनल किया और इंदिरा गांधी ने उस पर अपनी मुहर लगाई।
गुलजार सिंह बताते हैं कि दिल्ली हो या राजस्थान, जहां भी बूटा सिंह होते थे, वह हमेशा पंजाब की बात जरूर करते थे। बूटा सिंह कांग्रेस के ऐसे नेता रहे, जिन्होंने देश के चार प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय बूटा सिंह खेल मंत्री रहे। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें पहले देश का गृहमंत्री बनाया तो प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें खाद्य मंत्री बनाया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में राष्ट्रीय एससी कमीशन का चेयरमैन बनाया गया।
गुलजार सिंह बताते हैं कि आठ बार सांसद बनने के बावजूद वह जमीनी नेता थे। हमेशा अनुसूचित वर्ग के पक्षधर थे और हर फ्रंट पर उनकी बात रखते थे। गुलजार सिंह बताते हैं कि बूटा सिंह गांधी परिवार के काफी करीबी थे और परिवार हमेशा उनको अपना संकटमोचक मानता था। यही वजह रही कि कांग्रेस ने उनको राजस्थान की जलौर सीट दी थी, जो कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती थी। हालांकि 1966 में बूटा सिंह रोपड़ लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था। पंजाब में सिखों की कांग्रेस के प्रति नाराजगी को देखकर गांधी परिवार ने उन्हें राजस्थान भेज दिया था।
राजनीतिक सफर
1989 में बूटा सिंह चुनाव हार गए लेकिन 1991 में फिर जीते। इसके बाद वे फिर रोपड़ से चुनाव हारे। 1998 में उन्हें टिकट नहीं दी गई। वे राजस्थान के जालौर से आजाद लड़े और रिकॉर्ड 1.65 लाख वोटों से जीते थे। सोनिया गांधी के कांग्रेस प्रधान बनने के बाद वापस आए और 1999 में जालौर से फिर सांसद चुने गए। इस दौरान वे पब्लिक अकाउंट कमेटी के चेयरमैन रहे। 2004 में चुनाव से पहले उनका एक्सीडेंट हो गया। पंजाब की राजनीति में उनका नाम कई बार उछला कि वह सीएम पद के प्रबल दावेदार हैं लेकिन वह मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाये।
बूटा सिंह सबसे पहले अकाली दल की टिकट पर 1962 में मोगा से सांसद बने थे। फिर 1967 में वे दोबारा यहां से जीते। 1971 में रोपड़ सीट से कांग्रेस की टिकट पर जीत हासिल की। 1975 में भारत सरकार में उन्हें डिप्टी रेलवे मंत्री बनाया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे एससी कोटे की करीब 50 हजार पद भरवाए थे।
1977 में वे चुनाव हार गए थे। 1980 में वे रोपड़ से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते। 1982 में उन्हें एशियन गेम्स का प्रभारी भी बनाया गया। इंदिरा गांधी की मौत के बाद बूटा सिंह राजीव गांधी के करीब हो गए।
कैप्टन ने बूटा सिंह के निधन पर जताया शोक
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री बूटा सिंह के निधन पर दुख प्रकट किया। अपने शोक संदेश में कैप्टन ने कहा कि उन्हें वरिष्ठ कांग्रेस नेता के अकाल प्रस्थान की खबर सुनकर दुख पहुंचा है। बूटा सिंह आठ बार लोकसभा सदस्य चुने गए थे। वे पूर्व केंद्रीय मंत्री, बिहार के पूर्व राज्यपाल और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पूर्व चेयरमैन रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने आखिरी दम तक समाज के गरीब और दबे-कुचले वर्गों की भलाई और तरक्की के लिए अथक कार्य किए। मुख्यमंत्री ने ईश्वर के समक्ष अरदास की कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और उनके पारिवारिक सदस्यों को ईश्वरीय आदेश मानने का बल प्रदान करें।