किसान आंदोलन में डटा एथलीट, तीस दिन से भूख हड़ताल पर बैठे बेटे के गम में मां ने भी छोड़ा अन्न

दीपक शाही, अमर उजाला, जीरकपुर (पंजाब)
Updated Mon, 04 Jan 2021 12:08 PM IST
धरने पर बैठे जगतार सिंह।
– फोटो : फाइल फोटो
पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
ख़बर सुनें
मां के लबों पर जगतार का ही नाम था। परिजनों ने वीडियो कॉल कर मां की हालत दिखाई तो दोस्तों के साथ जगतार सिंह अस्पताल पहुंचे। बेटे का चेहरा देख मां की हालत में सुधार है। वहीं शरीर में कमजोरी के कारण डॉक्टरों ने जगतार सिंह को भी अस्पताल में भर्ती कर लिया।
यह भी पढ़ें – किसान आंदोलनः जनसमर्थन के लिए अब जम्मू का रुख, मध्यप्रदेश-गुजरात पर भी नजर
जगतार सिंह ने बताया कि वह 13 नवंबर से सिंघु बॉर्डर पर भूख हड़ताल पर बैठे हैं। लगातार भूखे रहने के कारण उनका 23 किलो वजन कम हो गया है। जगतार ने बताया कि वह किसान आंदोलन में जाने पहले ओलंपिक की तैयारी में जुटे थे। जगतार वेट लिफ्टिंग करते हैं और अब तक कई अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में हिस्सा ले चुके हैं।
मां की हालत सुधरते ही फिर आंदोलन में डटना है
जगतार सिंह ने कहा कि मां की तबीयत में सुधार होते ही चार या पांच जनवरी से वह किसान आंदोलन में दोबारा भूख हड़ताल पर बैठेंगे। जब तक केंद्र सरकार किसानों की मांगें नहीं मान लेती, तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा। जगतार ने पंजाब के सभी युवा किसानों से अपील की है, जो लोग अब तक आंदोलन से दूर हैं, वह भी अब इसे मजबूत करने के लिए आगे आएं।
यह भी पढ़ें – पंजाब : संगरूर में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अश्वनी शर्मा का विरोध करने पहुंचे किसानों पर लाठीचार्ज
दोस्तों के कहने पर मां से मिलने आया जगतार
जगतार सिंह की बुजुर्ग मां 2 जनवरी से बीमार थीं। डॉक्टरों ने उनका इलाज शुरू किया। मां की पल पल की खबर मोबाइल के जरिए बेटे तक पहुंचती रही। रविवार सुबह डॉक्टरों के कहने पर उनके कुछ दोस्त सिंघु बार्डर पहुंचे और जगतार सिंह को मां से मिलाने के लिए लेकर आए।
तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए
जगतार सिंह ढींढसा ने बताया कि वह मूल रूप से पंजाब के संगरूर का रहने वाला है। उसकी 35 एकड़ जमीन है, जहां उसका परिवार खेती करता है। उनका कहना है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए क्योंकि ये किसानों के हित में नहीं हैं और कृषि के निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं। इनसे कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा, किसानों को नहीं।