नीतीश ‘एक्शन रिप्ले’ के मोड में, क्या हैं इसके सियासी मायने?

भाजपा बन गई बड़ा भाई
यूं तो बिहार चुनाव के दौरान ही गठबंधन में मनभेद दिख गए थे। बहुमत मिला। डबल इंजन की सरकार बनी। नीतीश सातवीं बार सीएम (चेहरा-मोहरा) हो गए। भाजपा न केवल सीटों की संख्या के लिहाज से बल्कि पद और कद के हिसाब से भी पहले दिन से ही बड़ा भाई हो गई। भाजपा के दो-दो डिप्टी सीएम हुए। विजय कुमार सिन्हा को विधानसभा अध्यक्ष और अवधेश नारायण को विधान परिषद सभापति बनाकर इन दोनों कुर्सी पर भी भाजपा ने कब्जा जमा लिया। कम सीटों के चलते सीएम कुर्सी का ऑफर ठुकराने का संकेत देने वाले नीतीश चौतरफा घिरा महसूस करने लगे।
बोहनी खराब
नीतीश मंत्रिमंडल में जदयू कोटे से मेवालाल चौधरी शिक्षा मंत्री बने। गड़बड़ी के आरोप में 24 घंटे के भीतर ही ‘सुशासन बाबू ’ को उनका इस्तीफा कराना पड़ा। अब बात आई मंत्रिमंडल विस्तार की। सवा सौ सीटों में औसतन तीन-साढ़े तीन विधायक पर एक मंत्री पद की हिस्सेदारी बनती। नीतीश के जदयू से 43 विधायक हैं। जाहिर है इस बार जदयू के हिस्से में कम मंत्री पद हैं। नीतीश की चाह हिस्सेदारी से ज्यादा मंत्री पद की रही। इस पर भाजपा राजी नहीं। नीतीश को इससे संकट का अहसास हुआ। लगा कि ऐसे में जदयू में आंतरिक मनभेद पैदा हो सकता है। जदयू ने दबाव बनाने के लिए अरुणाचल का मुद्दा उठा दिया। अपने 6 विधायकों के एवज में वहां के मंत्रिमंडल में भाजपा से हिस्सेदारी मांग ली। नतीजा सामने है, मंत्रिमंडल में जगह तो दूर तीर कमान वाले विधायकों ने ही कमल खिला दिया। यह महज संयोग नहीं कि उधर अरुणाचल में जदयू के विधायक कमल खिला रहे थे, इधर सात कल्याण मार्ग, दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी बिहार के दोनों डिप्टी सीएम रेणु चौधरी और तारकिशोर प्रसाद के साथ बिहार में ‘विकास’ पर चर्चा कर रहे थे। दोनों डिप्टी सीएम ने बिहार लौटकर बयान भी दिया, पीएम से नीतीश के नेतृत्व में बिहार के विकास पर चर्चा हुई।
मंत्रिमंडल विस्तार अटका
बिहार के मंत्रिमंडल विस्तार का मामला अटक गया। फाइल भाजपा के दिल्ली दरबार में है। कहा तो यह जा रहा है कि ‘खरमास’ खत्म होते ‘शुभ’ होंगे। दरअसल, भाजपा ने दो डिप्टी सीएम, विधानसभा अध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति के बाद अब नीतीश से गृह और कार्मिक प्रशासन जैसे मंत्रालय की इच्छा जता दी है। ये दोनों मंत्रालय अभी नीतीश के पास ही हैं। वित्त पहले से भाजपा के पास है। गृह मंत्रालय पर भाजपा की नजर
की अपनी वजह है।
‘लव या जिहाद’
भाजपा बिहार के लिए पहली कैबिनेट में ही दो गिफ्ट देना चाहती थी। एक तो कोरोना वैक्सीन, जो चुनाव में वादा था। दूसरा धर्मांतरण विवाह कानून। जीएसटी (राजस्व) और आर्थिक संकट झेल रहे बिहार के मुखिया नीतीश ने केंद्र के भरोसे पर राज्य की आर्थिक हिस्सेदारी से कोरोना वैक्सीन वाले प्रस्ताव को पहली कैबिनेट में ही मंजूरी दे दी। खजाने की जिम्मेदारी भाजपा के पास पहले से है। हालांकि, नीतीश ने धर्मांतरण विवाह कानून को टाल दिया। जदयू के सोशल इंजीनियरिंग में यह मुद्दा फिट नहीं बैठता। याद करा दें, बिहार चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में नीतीश ने योगी आदित्यनाथ और ओवैसी के बयानों पर कहा था- कोई यहां से मुसलमानों को हटा नहीं सकता। सो, इस मुद्दे पर भाजपा के ‘लव’ के खिलाफ जदयू ने ‘जिहाद’ छेड़ दिया है। जदयू कार्यकारिणी के बाद केसी त्यागी ने धर्मांतरण विवाह कानून को संविधान के खिलाफ बताया। जदयू के नए अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने तरकश से धोखेबाज जैसे शब्दों के वाण चलाए। अटल के गठबंधन धर्म की याद दिलाई।
‘नौकरशाही पर नकेल’
बिहार में नौकरशाही को लेकर किचकिच की भी वजह है। पिछले पंद्रह साल से वहां की नौकरशाही के शीर्ष दस पदों पर खास चेहरे काबिज हैं। सीएम आवास पर चंचल कुमार से लेकर प्रत्यय अमृत, आनंद किशोर, अमृतलाल मीणा आदि। लेकिन गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को लेकर खासी परेशानी है। धर्मांतरण विवाह कानून के खिलाफ नीतीश और सुबहानी अड़े हैं। इससे जदयू को जनाधार का खतरा नजर आ रहा है, तो दूसरी तरफ भाजपा को अपने राज्यों के जरिए बंगाल-यूपी चुनाव तक ध्रुवीकरण का फायदा दिख रहा है। बिहार की नौकरशाही इस समय रुटीन के अलावा कुछ खास नहीं कर पा रही। एक-एक मंत्री के पास चार-पांच मंत्रालय हैं। अधिकारी सांसत में हैं कि कैबिनेट विस्तार के बाद किस मंत्री के हिस्से उनका विभाग होगा। सो, विभागीय कामकाज प्रभावित है।
जदयू बंगाल का ‘चिराग’
पश्चिम बंगाल की चुनावी लड़ाई की शुरुआत में भले भाजपा को दीदी के खिलाफ ‘रसगुल्ला’ की मिठास नजर आ रही है, लेकिन नीतीश ने ‘लिट्टी चोखा’ से जायका बदलने का मन बनाया है। बिहार में चिराग पासवान ने नीतीश का खेल बिगाड़ा था। अब जदयू भी बंगाल में उम्मीदवार उतारकर भाजपा पर दबाव बनाने की रणनीति में है। इससे वह चिराग वाले पुराने घटनाक्रम का अहसास कराने वाला है। जदयू के नये अध्यक्ष ‘राम’ आरसीपी सिंह ‘राम-हनुमान’ का रिश्ता बताते हैं। साफ कहते हैं कि हमारा यह रिश्ता बिहार और दिल्ली तक है। बंगाल की जदयू इकाई से वहां चुनाव लड़ने पर चर्चा जारी है। जाहिर है लोजपा की तरह जदयू का बंगाल में खाता खुल भी पाए या नहीं, लेकिन गणित तो बिगड़ ही सकता है।
‘एक्शन रिप्ले’ मोड
बिहार के गलियारे में भाजपा-नीतीश के इस सियासी ‘लव-जिहाद’ पर चुटकी जारी है। तेजस्वी ने बयान दिया कि अगले साल चुनाव होने वाले हैं। नीतीश पहले ही कह चुके हैं यह उनका आखिरी चुनाव है। सो नीतीश विधानसभा भंग करने की सिफारिश न करें लेकिन बंगाल में चिराग की तर्ज पर एक्शन रि प्ले मोड में आ रहे हैं। यह एक्शन रि प्ले महागठबंधन से भाजपा की तर्ज पर भाजपा से महागठबंधन की ओर भी हो सकता है।
शिवानंद तिवारी ने नीतीश के मान को लेकर कुछ सुखद संकेत भी दिए। लालू और कांग्रेस अभी खुद की स्थितियों से परेशान हैं। लालू काफी बीमार हैं और कांग्रेस नेतृत्व संकट से जूझ रही है। सो भले यह खिचड़ी अभी नहीं पक रही लेकिन नीतीश के सामने खुद के साथ जदयू के वजूद का संकट पैदा हो गया है। ऐसे में एक विकल्प यह भी बचता है कि यदि काठ की हांडी दोबारा न चढ़े तो दिल्ली (केंद्र) का रास्ता खुला है। यूं भी उनके खास मित्र सुशील मोदी अब दिल्ली (राज्यसभा) पहुंच चुके हैं। भाजपा के नए बनाम पुराने चेहरे की भीतरी खींचतान के बीच नीतीश के लिए मोदी कैबिनेट की बर्थ कन्फर्म है। बिहार की डबल इंजन की सरकार को यदि भविष्य में ड्राइवरलेस (नीतीश के बगैर) मेट्रो की रफ्तार मिले तो आश्चर्य नहीं। इस सरकार के सौ दिन पूरे होने पर गिफ्ट बनाम रिटर्न गिफ्ट की पटकथा आगे बढ़ सकती है। यह तो ट्रेलर है, पिक्चर अभी बाकी है।